अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने एक साल भीतर दूसरी बार इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी की है। बुधवार को लिए गए फैसले में फेडरल रिजर्व ने आधार दर में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी की है। इसके चलते अब अमेरिका में ब्याज दरें बढ़कर 0.50 से 0.75 फीसदी हो गई हैं। इससे पहले ये दरें 0.25 से 0.50 फीसदी के बीच थीं। अमेरिकी सेंट्रल बैंक के फैसले से भारत समेत दुनिया भर के स्टॉक मार्केट में सुस्ती आने की अाशंका है। एक्सपर्ट का मानना है कि ब्याज दरें बढ़ने से डॉलर में मजबूती आएगी और रुपए में कमजोरी के साथ शेयर मार्केट में गिरावट आ सकती है। दूसरी बार बढ़ाई दरें – अमेरिका में 2006 के बाद से दूसरी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की गई है। – इससे पहले अमेरिकी सेंट्रल बैंक ने दिसंबर 2015 में बॉन्ड खरीदारी प्रोग्राम को बंद कर ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला लिया था। – वहीं आखिरी बार 2006 में दरों में बढा़ेतरी की गई थी, जबकि 2008 में आई मंदी के दौरान दरों को 0 फीसदी के आसपास कर दिया गया था। – दिसंबर 2015 से पहले इसमें किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई। अर्थव्यवस्था में ग्रोथ जारी रहने की उम्मीद – नीति बनाने वाली फेडरल ओपन मार्केट कमिटी (FOM) ने मुख्य फेडरल दरों में 0 . 5 से 0 . 75 फीसदी तक बढ़ोतरी का सर्वसम्मति से निर्णय लिया। – कमेटी ने कहा कि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे आगे बढ़ेगी, अमेरिकी मार्केट में महंगाई भी बढ़ने रही है और लेबर मार्केट मजबूत होने की उम्मीद बनी हुई है। इंडियन मार्केट में असर – फेडरल रिजर्व के फैसले का असर इंडियर मार्केट पर बृहस्पतिवार को ही दिखाई पड़ा। – दरों में कटौती के चलते रुपए के साथ सेंसेक्स और निफ्टी सभी गिरावट के साथ गिरे। – डीमोनेटाइजेश के चलते विदेशी निवेशक पहले ही मार्केट से निकल रहे हैं, ऐसे में मार्केट पर इसका निगेटिव असर देखा जा सकता है। – एक्सपर्ट के मुताबिक, फेड रेट का असर भारत पर होगा। इसके चलते रुपए और शेयर मार्केट पर दबाव बढ़ेगा। – बॉन्ड में बढ़ोतरी के चलते विदेशी निवेशक अमेरिकी मार्केट में तेजी से भागेंगे और सुस्ती बनी रहेगी। इंडियन इकोनॉमी पर असर – ब्याज दरों में बढ़ोतरी का असर इंडियन इकोनॉमी पर भी देखने को मिल सकता है। – एक्सपर्ट्स की मानें तो इससे इम्पोर्ट महंगा हो सकता है। – माना जा रहा है कि दर बढ़ने से रुपए में कमजोरी आएगी और डॉलर महंगा होगा। – रुपए के कमजोर होने से इम्पोर्ट महंगा होना तय है। क्योंकि भारत अभी भी इम्पोर्ट बेस्ड इकोनॉमी है ऐसे में इकोनॉमी पर इसका असर आना लाजमी है। -हालांकि आईटी सेक्टर इससे अछूता रह सकता है, क्योंकि TCS, इन्फोसिस और विप्रो जैसी भारतीय कंपनियां अमेरिका को ही सॉफ्टवेयर निर्यात करती हैं। – डॉलर में करोबार होने के चलते उन्हें इसका सीधा फायदा मिल सकता है। आगे भी बढ़ सकतेे हैं रेट – अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती और फेडरल रिजर्व के आत्मविश्वास को देखते हुए आगे भी दरें बढ़ने की संभावना बनी हुई है। – अनुमानों की मानेंं तो फेडरल रिजर्व 2017 में .75 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है, इसमें भी सितंबर तक .50 फीसदी की बढ़ोतरी की गुंजाइश है। – यही नहीं 2018 और 2019 में भी इसी तर्ज पर दरों में बढ़ोतरी की संभावना जताई जा रही है।]]>