<![CDATA[पिछले सालो के दौरान सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिये म्युचुअल फंड (एमएफ) क्षेत्र में लगातार नकदी प्रवाह के कारण कई इक्विटी योजनओं की परिसंपत्तियां बढ़कर 10,000 करोड़ रुपये के खेमे में शामिल हो चुकी हैं। हालांकि दो साल पहले इस खेमे में महज तीन योजनाएं शामिल थीं लेकिन आज करीब 10 योजनाओं की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां 10,000 करोड़ रुपये से अधिक हो चुकी हैं। इसे बेहतर परिप्रेक्ष्य में देखने पर पता चलता है कि 2007 की जबरदस्त तेजी के दौरान महज चार योजनाओं की परिसंपत्तियां 5,000 करोड़ रुपये के पार पहुंची थीं और उस समय सबसे बड़ी इक्विटी योजना की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों का आकार करीब 6,400 करोड़ रुपये था। आउटलुक एशिया कैपिटल के सीईओ मनोज नागपाल ने कहा, 'निवेशक बाजार में प्रवेश करने के लिए एमएफ की राह अपना रहे हैं और इस प्रकार की अधिकांश रकम बड़े आकार की योजनाओं में प्रवाहित हो गई जिसे निवेशक सुरक्षित दांव मान रहे हैं।' पिछले 30 महीने के दौरान एसआईपी निवेश में जबरदस्त तेजी दर्ज की गई जो अब 1 करोड़ से अधिक खाते हो चुके हैं। एसआईपी के निवेश का औसत आकार करीब 3,500 रुपये है। आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल वैल्यू डिस्कवरी फंड जैसी कुछ योजनाएं इतनी बड़ी हो चुकी हैं कि बाजार में चर्चा है कि वे अस्थायी रूप से ताजा निवेश स्वीकार नहीं कर रही हैं। सूत्रों का कहना है कि एचडीएफसी मिडकैप अपरचुनिटीज फंड ऐसा ही एक अन्य फंड है जिसने आक्रामक तरीके अपना विपणन अभियान बंद कर दिया है। आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल एएमसी ने इस प्रकार की किसी योजना से इनकार किया। जबकि एचडीएफसी एमएफ ने कहा कि भारत में कोई बड़ा फंड नहीं है और यहां तक कि भारत के सबसे बड़े फंड एचडीएफसी इक्विटी का आकार भारतीय शेयरों के बाजार पूंजीकरण का महज करीब 0.2 फीसदी है। वास्तव में विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के कुल बाजार पूंजीकरण में एमएफ इक्विटी परिसंपत्तियों की हिस्सेदारी महज 4 से 5 फीसदी है। इसलिए नकदी प्रवाह नियमित होने पर बड़ी इक्विटी योजनाओं का प्रबंधन कोई समस्या नहीं है। नागपाल ने कहा, 'इन फंडों को लगातार भुनाए जाने के दबाव के समय प्रवेश और बाहर होने में कहीं अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है]]>