<![CDATA[केंद्र सरकार जल्द एक ऐसा अध्यादेश लेकर आ रही है जिससे रिजर्व बैंक को सशक्त किया जा सकेगा, जिससे वह प्रभावी तरीके से बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ती नॉन परफॉर्मिंग असेट (एनपीए) की समस्या से निपट सकेगा. सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अध्यादेश के जरिये बैंकिंग नियमन कानून की धारा 35 ए में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है. इस संशोधन के बाद रिजर्व बैंक लोन डिफॉल्टर से कर्ज की वसूली के लिए बैंकों को निर्देश जारी कर सकेगा. धारा 35ए के तहत रिजर्व बैंक को जनहित और जमाकर्ताओं के हित में बैंकों को निर्देश जारी करने का अधिकार होता है. मंत्रिमंडल की बैठक के बाद वित्त मंत्री अरण जेटली ने कहा कि मंत्रिमंडल ने बैंकिंग क्षेत्र के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण फैसले किए हैं. जेटली का कहना है कि इस तरह की परंपरा है कि जब किसी प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो उसके ब्योरे का खुलासा उस पर मंजूरी से पहले नहीं किया जा सकता है. जेटली ने कहा कि जैसे ही इस पर मंजूरी मिलेगी, इसका ब्योरा साझा किया जाएगा. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का डूबा कर्ज या एनपीए 6 लाख करोड़ रुपये के भारी-भरकम आंकड़े पर पहुंच चुका है. बीते वित्त वर्ष के पहले नौ माह में सरकारी बैंकों के डूबे कर्ज में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का इजाफा हुआ. 31 मार्च, 2016 तक यह 6.07 लाख करोड़ रुपये हो गया था. जाने एनपीए से लड़ने के लिए आ रहे अध्यादेश से जुड़ी खास बातें एनपीए समाधान के लिए लाए जाने वाले अध्यादेश में रिजर्व बैंक को यह अधिकार दिया जाएगा कि एनपीए के कारगर समाधान के लिए वह बैंकों को निर्देश दे सके. बैंकों के फंसे हुए कर्ज के संकट से निपटने के लिए मंत्रिमंडल ने बैंकिंग विनिमयन अधिनियम में संशोधित करने के अध्यादेश को अनुमति दी. अब इस अध्यादेश को राष्ट्रपति की अनुमति मिलनी है. अध्यादेश से रिजर्व बैंक को जांच एजेंसियों से बैंकों को बचाने का अधिकार मिल जाएगा क्योंकि बैंकों के कर्ज वसूलने के लिए उसे ओवरसाइट पैनल का गठन करना होगा जो जांच एजेंसियों के सामने बैंकों का पक्ष रखेंगे. गौरतलब है कि अभी तक बैंक सेटेममेंट के जरिए या एनपीए बेचने के विकल्प से कतरा रहे थे क्योंकि उन्हें जांच एजेंसियों से कड़ी पूछताछ का डर था.]]>