वर्तमान समय में अर्थव्यवस्था में रिकवरी से शेयर बाजार भी नित नए रिकॉर्ड स्तर बना रहा है। इस मौके का भुनाने के लिए कंपनियां भी स्टॉक मार्केट में लिस्टिंग (Listing) की तैयारी कर रही हैं, या फिर स्टाक मार्केट में लिस्ट हो चुकी हैं। इस वर्ष महज ढाई महीने में ही 10 से ज्यादा आईपीओ ( IPO) आ चुके हैं। यदि आप भी इनमें निवेश के बारे में विचार कर रहें हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखना अतिआवश्यक है।
आईपीओ समझे
प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव या इनिशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ), एक ऐसा शब्द है जिसे निवेशकों को शेयर बाजार में निवेश करने से पहले समझना होगा। आईपीओ लॉन्च करना और पब्लिक लिमिटेड कंपनी होना अक्सर अपने कार्यों को आगे बढ़ाने और विस्तार करने के लिए सबसे अच्छा उपाय होता है। शेयरों की पेशकश कर वे उस पूंजी को जुटाने में सक्षम होते हैं, जो उनके पास उस समय नहीं थी। अधिक तरलता लाने के अलावा, यह उन्हें लोन चुकाने और यहां तक कि कंपनी के बारे में सार्वजनिक धारणा सुधारने की अनुमति देता है। आईपीओ लॉन्च से पहले बारी-बारी से कई और महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं शामिल होती हैं, और कंपनियों को प्रासंगिक मंजूरी प्राप्त करने के लिए उन्हें पूरा करना होता है। कई स्थापित कंपनियों ने बीएसई सेंसेक्स, नैस्डेक 100, एनवाईएसई, जैसे प्रमुख बाजार सूचकांकों पर अपने आईपीओ को लॉन्च करने के बाद शानदार बढ़त प्राप्त की हैं।
आईपीओ की प्रासंगिकता
कंपनियां अपने संस्थापकों और निवेशकों के सह-स्वामित्व में होती हैं, जो अक्सर कंपनी को विश्वसनीय स्थिति में आगे लेकर जाते हैं। आईपीओ के माध्यम से कंपनी के शेयरों को जनता के लिए खोलने का निर्णय अच्छे प्रदर्शन के वर्षों के बाद प्राप्त विश्वास पर आधारित होता है। नए फंड के आने के अतिरिक्त भी कई कारण होते हैं, और उनमें से एक है लोन का भुगतान। कई एंटरप्राइज फंड्स के लिए बैंक लोन पर भरोसा करते हैं, और स्थिर प्रदर्शन के बाद लोन चुकाना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। बेचे गए शेयरों के माध्यम से जुटाए गए फंड के साथ अकाउंटिंग बुक्स को पॉजिटिव रखने से उन्हें अपने भविष्य में निवेश की सुविधा मिलती है। उदाहरण के लिए, आईटी और मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में नई तकनीकों और रिसर्च में पैसा लगाना, अनुभवी उम्मीदवारों को काम पर रखना या बुनियादी ढांचे के एडवांसमेंट से जुड़े कदम उन्हें तत्काल उठाने होते हैं। इसके लिए आईपीओ बहुत ही सहायक हो सकता है।
इन्वेस्टमेंट बैंकर
कंपनियों को पहले अंडरराइटिंग के लिए एक निवेश बैंक को नियुक्त करना होता है, क्योंकि आमतौर पर ये ही तय करते हैं कि शेयर की प्रारंभिक कीमत कितनी होनी चाहिए। वे उस पूंजी की मात्रा का मूल्यांकन करते हैं जो कंपनी अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बेचती है और शेयरों के किस हिस्से को बेचने की आवश्यकता होती है। इसके बाद, कंपनियों को एक रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (आरएचपी) बनाना होता है, जो कंपनी की 360-डिग्री प्रोफ़ाइल है जो उनकी प्रदर्शन यात्रा, दीर्घकालिक योजनाओं और उद्योग में अन्य प्रतिस्पर्धियों के बीच स्थिति को स्पष्ट करता है। इसके बाद नियामक निकायों को आरएचपी जमा किया जाता है जो आईपीओ के लिए अनुमोदन और अन्य लॉन्च औपचारिकताओं का ध्यान रखता है। भारत के मामले में, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) दस्तावेजों का सत्यापन करने और उनकी स्वीकृति की संचार की जिम्मेदारी लेता है। फिर इसे औपचारिकता और सर्टिफिकेशन के लिए बीएसई जैसे प्रमुख बाजार सूचकांकों में ले जाया जाता है। आईपीओ तब सूचीबद्ध होता है और निवेशकों को शेयरों का आवंटन पहले आवेदन करने का लाभ प्रदान करता है।
आईपीओ के लाभ और निवेश से पहले
निवेशकों को लगातार बाजार के घटनाक्रम की निगरानी करने और सबसे अच्छी पेशकश का लाभ उठाने के लिए पहले निवेश करने की आवश्यकता होती है। आमतौर पर, शेयर की कीमतें न्यूनतम मूल्य पर आंकी जाती हैं, और जो तेजी से खरीद करते हैं, हायर रिटर्न हासिल करने की अधिक संभावना रखते हैं। एक बार जब वे सेकंडरी मार्केट में कारोबार करते हैं तो शेयर मूल्य अक्सर बढ़ जाते हैं। किसी इश्यू में निवेश करना है या नहीं, यह तय करने के लिए देखा जाना चाहिए कि जिस कंपनी का आईपीओ आ रहा है वह नामी-गिरामी है या नहीं, या जिस उद्योग में वह काम कर रही है, उसका उस सेग्मेंट में सम्मान है या नहीं। उदाहरण के लिए, अगर किसी फर्म को नई पीढ़ी के प्रोडक्ट्स पेश करने और इनोवेशन के लिए जाना जाता है और उसकी पहचान अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव लाने वाली कंपनी के तौर पर है तो इस इश्यू पर तत्काल एक्शन लेने की जरूरत है क्योंकि उसमें विकास की प्रचुर संभावना होती है। हालांकि, ऐसे उदाहरण भी हैं जब अच्छी प्रदर्शन करने वाली कंपनियां फेल हो जाती हैं। ऐसे परिदृश्यों के लिए खुद को तैयार करने के लिए, निवेश का फैसला लेने से पहले आरएचपी का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने के लिए विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है। जब आप कंपनी से जुड़े नफा-नुकसान को समझते हैं, तो वह संभावनाओं की बेस्ट-पॉसिबल धारणा बना सकता है।
शीघ्र रिटर्न न मिले तो लॉग टर्म का ध्यये
अन्य मामलों में, हो सकता है कि कंपनियां शीघ्र रिटर्न न दें और और इसकी अपेक्षा पांच से दस वर्षों की लंबी अवधि में स्थिर ग्रोथ ट्रैजेक्टरी प्रदान करें। तब उनमें निवेश करना लाभप्रद हो सकता है, बशर्ते उनके प्रबंधन का मजबूत और विकासशील रिकॉर्ड होना आवश्यक है। दूसरी तरफ, कंपनियां जनता की संपत्ति पर अच्छा प्रदर्शन करती है तो वह लोगों की नजर में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त करती हैं। यह समझदारी है कि कंपनियां अपने फंडिंग विकल्पों में विविधता लाती हैं, जैसे कि बैंक लोन, नए निवेशक, विलय और अधिग्रहण, और आईपीओ के माध्यम से अपने शेयरों का एक हिस्सा बेचना। यह कंपनियों को एक बेहतर विकास रणनीति की योजना बनाने में सहायकता करता है और सबसे अच्छे दिमागों को साथ लाता है। इससे कंपनी की ग्रोथ होती है।