पूंजी बाजार नियामक सेबी ने म्यूचुअल फंड के नियमों में संशोधन किया है। इसके तहत म्यूचुअल फंड को अपनी योजनाओं में पैसा लगाने की जरूरत होगी जो जोखिम स्तर पर निर्भर करेगा। इस पहल से कंपनी के प्रबंधन करने वाले कार्यकारियों की योजनाओं में हिस्सेदारी (स्किन इन द गेम) सुनिश्चित होगी। यह योजनाओं के बेहतर प्रबंधन और निवेशकों के हित से आवश्यक है।
वर्तमान नियमों के अनुसार ‘नई कोष पेशकश’ (NFO) के अनुसार जुटाई गई रशि का एक प्रतिशत या 50 लाख रुपये, जो भी कम हो निवेश की आवश्यक होती है। एक अधिसूचना में सेबी का कहना कि संपत्ति प्रबंधन कंपनी समय-समय पर बोर्ड द्वारा निर्धारित योजनाओं से जुड़ी रिस्क के आधार पर म्यूचुअल फंड की ऐसी योजनाओं में निवेश करेगी।
हालांकि, नियामक ने न्यूनतम राशि तय नहीं की गई है, जो कि म्यूचुअल फंड (MF) को निवेश करने की आवश्यकता होगी। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार म्यूचुअल फंड को इक्विटी जैसे जोखिम वाली योजनाओं में अधिक राशि निवेश करने की आवश्यक होगी जबकि बांड फंड जैसे कम रिस्क वाली निवेश योजनाओं में निम्न रशि लगाने की आवश्यकता होगी।
इसके साथ ही सेबी ने IPO के बाद प्रर्वतकों के लिये न्यूनतम ‘लॉक इन’ अवधि कम करने का निर्णय किया। निदेशक मंडल की बैठक के बाद भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड सेबी का कहना है कि समूह की कंपनियों के लिए नियमों को सही करने का भी निर्णय किया गया है।
सेबी ने ‘लॉक इन’ अवधि के बारे में कहा कि अगर निर्गम के उद्देश्य में किसी परियोजना के लिए पूंजीगत व्यय के अलावा अन्य बिक्री पेशकश या वित्तपोषण का प्रस्ताव शामिल है, तो आरंभिक सार्वजनिक निर्गम और अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम (NFO) में आबंटन की तारीख से प्रवर्तकों का न्यूनतम 20 प्रतिशत का योगदान 18 महीने के लिये ‘लॉक’ किया जाना चाहिए। वर्तमान में, ‘लॉक-इन’ अवधि तीन वर्ष है।