<![CDATA[देश में तमाम कौशल विकास योजनाओं को एक ही मंत्रालय के सुपुर्द कर दिया जाना चाहिए। उद्योग चैंबर एसोचैम और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के अध्ययन में यह सुझाव दिया गया है। दोनों की ओर से तैयार साझा रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा करने से इन स्कीमों से बेहतर नतीजे मिल पाएंगे। फिलहाल अलग-अलग मंत्रालयों के मातहत कई कौशल विकास योजनाएं चल रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक राजग सरकार ने कौशल विकास के लिए अलग से कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय बनाया है। इसका लक्ष्य कई मंत्रलयों से संबंधित सभी योजनाओं और कार्यक्रमों एक ही मंत्री के मातहत लाना था। इस मंत्रालय का बजट 25,000 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था। फिलहाल स्थित यह है कि कौशल विकास स्कीमें अलग-अलग मंत्रलयों के तहत बनी हुई हैं। कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय सिर्फ इनके बीच तालमेल की भूमिका निभा रहा है। रिपोर्ट में यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण का तंत्र गंभीर समस्याओं से दो-चार है। ये हालात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्किल इंडिया अभियान की प्रगति की राह में रोड़े अटका सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार देश अजीब सी विरोधाभासी स्थिति का सामना कर रहा है। आज बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षा से लैस पुरुष और महिलाएं श्रम बाजार में कदम रख रहे हैं। उन्हें बेहतर रोजगार की तलाश है। इसके उलट उद्योग जगत की शिकायत है कि उसे कुशल श्रम उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इस हालात में श्रम बाजार की विविधता और असंगठित क्षेत्र के दबदबे को देखते हुए ऐसा मॉडल विकसित करना चुनौतीपूर्ण है, जो नियोक्ता, प्रशिक्षक, प्रशिक्षु और सरकार समेत सभी भागीदारों को फायदा पहुंचा सके।]]>