अमेरिकी बैंक का कहना है कि आने वाले समय में विश्विक आर्थिक मंदी आ सकती है। लेकिन भारत इस मंदी के कारण ज्यदा प्रभावित नहीं होगा। क्या आपको 2008 में आई आर्थिक मंदी याद है? इस वैश्विक मंदी से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। जबकि भारत की अर्थव्यवस्था को तत्कालीन सरकार ने किसी तरह संक्रमण से बचाया और यहां इसका आंशिक असर दिखाई दिया। इस बारे में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस आर्थिक मंदी के संकेत पहले ही दे दिए थे, लेकिन उनकी बातों को विश्व के ज्यादातर आर्थिक विशेषज्ञों ने नकार दिया था। एक बार फिर से दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं मंदी का संकेत दे रही हैं। इस बारे में अमेरिकी इंवेस्टमेंट बैंकिंग मॉर्गन स्टेनली का कहना है कि अगले 9 महीनों में एकबार फिर से वैश्विक मंदी दस्तक देगी। लेकिन भारत पर इसका प्रभाव कम होगा।
आर्थिक मंदी के कारक
अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वार के कारण दोनों देशों की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में मंदी छाई हुई है। वैश्विक मंदी के लिए यह सबसे बड़ा कारक साबित होगा। सितंबर महीने में दोनों देश के प्रतिनिधियों के बीच प्रस्तावित बैठक पर भी संकट के बादल छाए हुए हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा कि चीन और अमेरिका के बीच होने वाले ट्रेड टॉक को कैंसिल किया जा सकता है। जानकारों का कहना है कि 2020 के अंत में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव तक ट्रंप का यह रवैया रह सकता है और तब तक ट्रेड वार का खतरा बना रहेगा।
वैश्विक मंदी का सबसे बड़ा दूसरा कारक बांड यील्ड का उल्टा होना है। यह घटना 2008 की मंदी से पहले भी हुई थी। मंदी से पहले भी बांड यील्ड के ग्राफ का कर्व उलटा हुआ था और यह अब लगभग वैसा ही हो रहा है। जिसके कारण विश्वैक मंदी आ सकती है।
यूरोप में ब्रिटेन, जर्मनी समेत अन्य देशों पर मंदी का बड़ा खतरा मंडरा रहा है. ब्रेक्सिट के कारण राजनीतिक अनिश्चितता की वजह से वहां दूसरी तिमाही में GDP के आंकड़े कमजोर आए हैं, जिससे आसन्न मंदी की आशंका बढ़ गई है.
भारत पर मंदी के प्रभाव कम होने के कारण
बचत की परंपरा
भारत में अन्य देशों के उल्ट बचत की परंपरा है यहा के निवासियों की जो आय होती है उसमें वह पहले बचत को महत्व देते हैं इसके बाद खर्च करते हैं। इसलिए यदि यहा बचत के कारण आर्थिक मंदी आने पर उस बचत का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए मंदी का असर भारत पर कम होगा।
खपत अधिक
भारत की जनसंख्या बल बहुत अधिक जिसमें युवाओं की संख्या सबसे अधिक है जो सबसे अधिक खपत करते हैं। भारतीय युवाओं को अधिक से अधिक बस्तुओं की आवश्यकता है जिसकी वह खपत कर सकते हैं। इसलिए पूरे विश्व में भारत सबसे अधिक मांग भारत में मौजूद है जिसके कारण खपत अधिक होगी।
कृषी प्रधान अर्थव्यवस्था
भारतीय अर्थव्यवस्था कृषीप्रधान है जिसके कारण भारत में मंदी का असर कम होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था के उत्पादन की मांग विदेशों के अलावा भारत में भी अधिक है इसलिए यहा मंदी की संभावना कम है।
मॉर्गन स्टेनली के मुताबिक
भारत में मंदी का खतरा इस स्तर तक नहीं है। लेकिन, सरकार को चौकन्ना रहना होगा और इसकी अनदेखी किए बगैर जरूरी कदम उठाने होंगे। पिछले दिनों RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी कहा था कि वर्तमान में अर्थव्यवस्था में मंदी तात्कालिक हैं। यह एक साइक्लिक प्रॉसेस है। संस्थागत या नीतिगत तौर पर भारत में सबकुछ सही दिशा में चल रहा है। इसलिए कहा जा सकता है कि वैश्विक आर्थिक मंदी का असर भारत पर नहीं के बराबर होगा।
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