कमिटी के सामने कई सवाल हैं। क्या वह महज कागज पर मौजूद आरबीआई के ‘अनरियलाइज्ड’ रिजर्व पर सरकार के हाथ डालने का पक्ष लेगी? या वह ‘कंटिंजेंसी’ या रियलाइज्ड रिजर्व के एक हिस्से के इस्तेमाल की ही इजाजत देगी? सरकार मिलने वाली रकम को कैपिटल अकाउंट में रखेगी या रेवेन्यू अकाउंट में (जिससे इसका उपयोग करने में ज्यादा सहूलियत होगी)? और सबसे अहम बात यह कि क्या पैसे का यह ट्रांसफर एक हफ्ते में हो सकता है ताकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने पहले बजट में इस विंडफॉल को शामिल कर पाएं?
30 जून 2018 को आरबीआई के पास 2.3 लाख करोड़ रुपये का कंटिंजेंसी फंड था, जबकि अनरियलाइज्ड गेन (करंसी और गोल्ड रीवैल्यूएशन अकाउंट) करीब 5.3 लाख करोड़ रुपये का था। कमिटी से नहीं जुड़े आरबीआई के अधिकारियों के अनुसार, जरूरी नहीं है कि अनरियलाइज्ड रिजर्व को हाथ लगाने का मतलब डॉलर की बिकवाली हो । इसके बजाय वे पेपर एंट्री की बात कर रहे हैं ताकि सरकार के पास ट्रांसफर दिखाया जा सके और साल के दौरान नई करंसी छापकर सरकार को मॉनेटरी सपॉर्ट दिया जाए। इस तरह लायबिलिटी में कमी के बाद ऐसेट्स घटाने के बजाय नई लायबिलिटी बनाकर (सरकार को करंसी जारी कर) बही-खाता बैलेंस किया जाए।
हालांकि इसमें कुछ बाधाएं आ सकती हैं। कमिटी ने अनरियलाइज्ड रिजर्व को हाथ लगाने दिया तो आरबीआई बोर्ड को पिछले साल एक बोर्ड मीटिंग में पास अपने एक प्रस्ताव को बदलना होगा। तब सेंट्रल बोर्ड ने तय किया था कि अनरियलाइज्ड गेंस बतौर डिविडेंड सरकार को नहीं दिए जाएंगे। हालांकि इस मामले में आरबीआई के निर्णय न कर पाने के बाद यह कमिटी बनाई गई थी, लिहाजा कमिटी की सिफारिश आरबीआई को माननी पड़ सकती है। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि कंटिंजेंसी फंड को हाथ नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इसका सहारा अचानक बहुत खराब हालत में लिया जा सकता है।
सवाल यह है कि क्या जालान और उनकी टीम ऐसी सलाह देंगे, जिस पर सीधे कदम उठाया जा सके या वे विभिन्न स्थितियों का विश्लेषण भर कर देंगे और आरबीआई को ही अंतिम निर्णय करना होगा। अब देखना है कि एस प्रकार कि स्थिति में किस प्रकार के निर्णय लिया जाएगा ।
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