रतन टाटा को एक आर्किटेक्‍ट के तौर पर काम न कर पाने का मलाल

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टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा का कहना है कि एक आर्किटेक्ट के तौर पर अपने काम को लंबे समय तक जारी नहीं रख पाने का उन्हें मलाल है। उन्होंने लॉस एंजिलिस में एक आर्किटेक्ट के कार्यालय में भी कुछ वक्त काम कियां। लेकिन वह उसे ज्‍यादा समय तक जारी नही रख पाऐ।

उल्‍लेखनीय है कि टाटा दो दशक से भी अधिक समय तक देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा समूह के प्रमुख रहे हैं। उन्‍होंने प्रमुख रहते टाटा समूह को एक नई ऊचाई पर ले जाने में अहम योगदान दिया है।

आर्किटेक्चर से मिलती थी प्रेरणा

‘भविष्य के डिजाइन और निर्माण’ विषय पर कॉर्पगिनी के वेबिनार में टाटा ने अपने वक्‍तवय में कहा कि , ‘‘मैं हमेशा से आर्किटेक्ट बनना चाहता था क्योंकि यह मानवता की गहरी भावना से जोड़ता है। मेरी उस क्षेत्र में बहुत रुचि थी क्योंकि आर्किटेक्चर से मुझे प्रेरणा मिलती है। लेकिन मेरे पिता मुझे एक इंजीनियर बनाना चाहते थे, इसलिए मैंने दो साल इंजीनियरिंग की.’’ उन्होंने कहा, ‘‘उन दो सालों में मुझे समझ आ गया कि मुझे आर्किटेक्ट ही बनना है, क्योंकि मैं बस वही करना चाहता था।’’ टाटा ने कॉरनैल विश्वविद्यालय से 1959 में आर्किटेक्ट में डिग्री ली। उसके बाद भारत लौटकर पारिवारिक कारोबार संभालने से पहले उन्होंने लॉस एंजिलिस में एक आर्किटेक्ट के कार्यालय में भी कुछ वक्त काम किया। लेकिन वह उसे जारी नहीं रख पाए।

मलाल जरूर है

रतन टाटा का कहना था कि , ‘‘हालांकि बाद में मैं पूरी जिंदगी आर्किटेक्चर से दूर ही रहा। मुझे आर्किटेक्ट नहीं बन पाने का दुख कभी नहीं रहा, मलाल तो इस बात का है कि मैं ज्यादा समय तक उस काम को जारी नहीं रख सका। जो कि मुझे सबसे ज्‍यादा पसंद था।

वेबीनार के दौरान टाटा ने डेवलपरों और आर्किटेक्चर्स के शहरों में मौजूद झुग्गी-झोपड़ियों को ‘अवशेष’ की तरह इस्तेमाल करने पर नाराजगी जाहिर की साथ ही कहा कि क्‍यो न हमें उनके लिए अच्‍छे घर उपलब्‍ध कराना चाहि‍ए।

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