इस अवधि में एफपीआइ ने डेट मार्केट में 27,000 करोड़ रुपये निवेश किए। शेष 9,000 करोड़ रुपये हाइब्रिड इंस्ट्रूमेंट में निवेश किए गए। जानकारों का मानना है कि अगले वर्ष भी यही स्थिति बने रहने की उम्मीद है। हालांकि अमेरिका-चीन ने ट्रेड-वार के मामले पर पिछले दिनों कदम वापस लिए हैं। जानकार यह भी मानते हैं कि किन्हीं वजहों से इसके गहराने या घरेलू क्रेडिट मार्केट में किसी विपरीत स्थिति के पैदा होने पर हालात बदल भी सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लोबल इंटरेस्ट रेट के अनुकूल रहने, केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती और घरेलू कॉरपोरेट मुनाफे में वृद्धि की उम्मीदों के चलते अगले वर्ष भी विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों में निवेश की रफ्तार बरकरार रख सकते हैं। हालांकि ट्रेड वार, कच्चे तेल के भाव में तेजी और एनबीएफसी में नकदी संकट बने रहने से खेल खराब हो सकता है। लेकिन उम्मीद की जा रही है कि नवेशकों के इन्वेस्टमेंट की दर इसी तरह जारी रहेगी।
डिपॉजिटरी आंकड़ों के मुताबिक विदेशी निवेशकों ने इस वर्ष अब तक कुल 18 लाख करोड़ रुपये की सकल खरीद (ग्रॉस परचेज) की है। इस दौरान उन्होंने 16.7 लाख करोड़ रुपये की सिक्युरिटीज को इक्विटी, डेट और हाइब्रिड इंस्ट्रूमेंट के माध्यम से बेच दिया। इस तरह से 1.3 लाख करोड़ रुपये का निवेश बरकरार रहा। यह पिछले पांच वर्षों में दूसरा सबसे बड़ा इनफ्लो है।
सूत्रों के का कहना है कि कुछ ग्लोबल और घरेलू वजहों से भारतीय शेयर मार्केट में विदेशी निवेश बढ़ा है। इनमें अमेरिकी केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति, अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड समझौते की उम्मीद और भारत सरकार द्वारा कॉरपोरेट टैक्स में कटौती जैसी वजहें शामिल रहीं हैं वही मोदी सरकार द्वारा सत्ता में मजबूत बापसी प्रमुख कारण है कि निवेशकों को निवेश के लिए अनुकूल महौल लग रहा है।
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