<![CDATA[सिक्यॉरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट लॉन्च करने की मंजूरी देकर कमोडिटी डेरिवेटिव्स मार्केट के डिवेलपमेंट की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया है। इससे पहले कमोडिटी को ऑप्शंस की इजाजत नही थी . 2015 में सेबी ने कमोडिटी मार्केट के रेगुलेशन का जिम्मा संभाला था। सेबी बोर्ड की बुधवार को मीटिंग हुई, जिसमें आईपीओ से 100 करोड़ रुपये से अधिक रकम जुटाने वाली कंपनियों के लिए एक मॉनिटरिंग एजेंसी बनाना अनिवार्य बनाया गया। यह एजेंसी देखेगी कि फंड का इस्तेमाल कंपनी वादे के मुताबिक कर रही है या नहीं। वहीं, नॉन-रेजिडेंट इंडियंस (एनआरआई) और उनके मालिकाना हक वाली कंपनियों के पार्टिसिपेटरी नोट्स सब्सक्राइब करने से रोक दिया गया है। सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने बोर्ड मीटिंग के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'रेग्युलेशन में बदलाव के साथ हमें रूल्स भी बदलने पड़ेंगे। हम सरकार के सामने जल्द इस बारे में प्रस्ताव भेजेंगे। मैं इसके लिए कोई समयसीमा नहीं देना चाहता, लेकिन कमोडिटी डेरिवेटिव मार्केट के लिए यह प्रायॉरिटी है और हमारे लिए हाई प्रायॉरिटी।' त्यागी ने बताया कि कमोडिटीज ऑप्शंस फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स में बदल जाएंगे, जिसके लिए समय आने पर डिटेल्ड गाइडलाइंस जारी की जाएंगी। उन्होंने कहा, 'इसकी डिटेल पर काम होगा, लेकिन यह डेरिवेटिव्स प्रॉडक्ट होगा। इसका सेटलमेंट कैश में नहीं होगा क्येोंकि डेरिवेटिव्स मार्केट को सेबी रेग्युलेट करता है। वह स्पॉट मार्केट का रेगुलेशन नहीं देखता। इसलिए यह अलग तरह का ऑप्शन होगा।' म्यूचुअल फंड्स, बैंक और बीमा कंपनियों जैसे इंस्टीट्यूशनल पार्टिसिपेशन के बारे में उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से अप्वाइंट एक्सपर्ट कमेटी की राय मिलने के बाद यह देखा जाएगा कि स्पॉट और फ्यूचर्स मार्केट में तालमेल किस तरह बनाया जा सकता है। सेबी ने कमोडिटी ब्रोकिंग यूनिट को ब्रोकर की इक्विटी यूनिट के साथ मर्ज करने की भी इजाजत दे दी। एमसीएक्स के एमडी और सीईओ मृगांक परांजपे ने बताया कि ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट का फ्यूचर्स में बदलना सही मॉडल है। उन्होंने ब्रोकर की कमोडिटी और इक्विटी यूनिट को मर्ज करने की इजाजत देने वाले फैसले का भी स्वागत किया। परांजपे ने कहा कि इससे कमोडिटीज मार्केट में वॉल्यूम बढ़ेगा। आईपीओ से जुटाए जाने वाले फंड का सही इस्तेमाल हो, इसके लिए भी सख्ती की जा रही है। त्यागी ने कहा, 'मॉनिटरिंग कमेटी इस पर रिपोर्ट देगी, जो एक्सचेंज के पास उपलब्ध होगी। ऑडिट कमेटी भी इसे मॉनिटर करेगी। इससे रूल्स पर अमल सुनिश्चित किया जा सकेगा। अगर लोग इस नियम को नहीं मानेंगे तो सेबी उनके खिलाफ उचित कार्यवाही करेगा।' वकीलों का कहना है कि मॉनिटरिंग एजेंसी की रिपोर्ट तिमाही खत्म होने के 45 दिनों के अंदर सौंपनी है और यह लिस्टिंग रेगुलेशंस के मुताबिक है।]]>