<![CDATA[बैंक और नाबार्ड समेत सभी वित्तीय संस्थान ऐसे लोगों को कर्ज दें जो अब तक इससे वंचित रहे हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इन संस्थानों से यह अपील की है। जेटली के मुताबिक इससे असंगठित क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने में मदद मिलेगी। वित्त मंत्री मंगलवार को यहां राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। जेटली ने कहा, ‘यह तथ्य है कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या संगठित के मुकाबले काफी अधिक है। लेकिन उन्हें कर्ज पाने में काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। अगर बैंकों और वित्तीय संस्थानों के संसाधनों को कई योजनाओं के माध्यम से असंगठित क्षेत्र को ट्रांसफर किया जाता है तो इससे रोजगार के ज्यादा मौके पैदा होंगे। इस दौरान उन्होंने स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के फायदे भी गिनाए। वित्त मंत्री ने कहा कि एसएचजी काफी तेजी से आगे आए हैं। इन समूहो ने ग्रामीण इलाकों में लाखों लोगों को रोजगार दिया है। ज्यादातर एसएचजी का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा मिली है। स्वयं सहायता समूह अभियान 25 साल पहले कुछ इकाइयों के साथ शुरू हुआ था। आज पूरे देश में इन इकाइयों की संख्या 85 लाख को पार कर गई है। एसएमई पर करें फोकस: मूंदड़ा बैंक छोटे व मझोले उद्यमों यानी एसएमई को ग्रोथ का संभावित क्षेत्र मानते हुए उन्हें कर्ज देने पर फोकस करें। उन्हें इस क्षेत्र को सरकारी नीति के अनुपालन या चैरिटी अथवा महज लक्ष्य पूरा करने का मामला नहीं मानना चाहिए। घटते उधारी के आंकड़े और बढ़ते फंसे कर्जो यानी एनपीए के बीच रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एसएस मूंदड़ा ने एक कार्यक्रम के दौरान यह बात कही। मूंदड़ा ने बैंकों का आह्वान किया कि वे एसएमई सेक्टर को कर्ज देने पर गंभीरता से विचार करें। फंसे कर्ज को मान रहे हैं अपराध: भट्टाचार्य भारतीय बैंकिंग उद्योग फंसे कर्जो (एनपीए) के भारी बोझ से जूझ रहा है। इस मामले में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) की मुखिया अरुंधती भट्टाचार्य ने कहा है कि हमारे देश में एनपीए के साथ अपराधी जैसा व्यवहार किया जा रहा है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। समाज की ओर से नाकामी पूरी तरह नामंजूर है। फिर भी असफलताएं सामने आती हैं। वह उद्योग चैंबर फिक्की के एक कार्यक्रम में बोल रही थीं। एसबीआइ प्रमुख ने कहा कि जब लोन दिया जा रहा था तब आर्थिक विकास दर 8.5 फीसद थी। उस वक्त ऐसा नहीं सोचा गया था कि कर्ज एनपीए में तब्दील हो जाएगा। मगर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर एक समय करीब चार फीसद तक गिर गई।]]>